ज़िका वायरस
ज़िका वायरस एक खतरनाक इन्फेक्शन हैं। जिसका असर ज्यादातर छोटे बच्चों में देखने को मिलता हैं। ज़िका वायरस से मृत्यु के मामले अभी तक बहुत कम देखने को मिले है । लेकिन अफ़्रीका के बाद अब पुरे विश्व में इसका असर देखने को मिला है। ज़िका एक वायरस है। जोकि डेंगू की तरह ही फैलता है।
ज़िका वायरस / ज़िका बुखार
यह वायरस मच्छर से होता है। ये वायरस एंडीज एजिप्टी नामक मच्छर की प्रजाति के काटने से फैलता है। यह एक प्रकार का वायरल बुखार है। विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO के मुताबिक एंडीज मच्छर आमतौर पर दिन में काटते हैं। इस मच्छर के काटने से डेंगू , चिकनगुनिया भी फैलता है। यह मच्छर गर्भवती महिलाओं के लिए व गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए बहुत खतरनाक है।
ज़िका वायरस के लक्षण
ज़िका वायरस के कई लक्षण डेंगू के लक्षण के समान होते हैं और वे काफी घातक और खतरनाक होते हैं। जैसे:-- बुखार का आना
- शरीर पर चकत्ते पड़ना
- जोड़ों में दर्द
- आंखों का लाल होना
- मांसपेशियों में दर्द
- सिरदर्द
कुछ मरिजो को तो शुरुआत में इस बिमारी के लक्षणों के बारे में पता भी नहीं चलता हैं। लेकिन कुछ मरिजो को बुखार हो सकता है, शरीर पर लाल रंग के निशान हो सकते हैं, सिरदर्द हो सकता है और पुरे शरीर में दर्द हो सकता हैं। ज्यादातर इसके लक्षण 2-7 दिनों तक रहते हैं। लक्षण नजर आने पर डॉक्टर को दिखाना जरूरी है।
ज़िका वायरस/ सिम्टम्स /टेस्टिंग & ट्रीटमेंट ऑफ ज़िका वायरस
यदि लाल रंग के निशान हैं और वायरल फीवर है या जोड़ों में दर्द है या आंखों के पिछले भाग में दर्द है या सरदर्द है तब ज़िका का टैस्ट करवा लेना चाहिए।
ज्यादातर यह लाल रंग के निशान पैदा करता है अगर कहीं पर भी लाल निशान शरीर पर आते हैं तो इसके लिए पहले डेंगू और अगर डेंगू नहीं तो चिकनगुनिया और ज़िका का टैस्ट करवाना चाहिए।
Mild symptoms ( हल्के लक्षण) मे बुखार होता है, शरीर पर लाल रंग के निशान होते हैं, जोड़ों में दर्द हो सकता है, आंखों में लालिमा देखने को मिला सकती है, मांशपेशियों में तनाव एवं दर्द होता है और सर में दर्द रहता है। ये जो लक्षण है ये 3 से 4 हफ्ते रहते हैं। यह भी संभव है कि ये सभी लक्षण 20 से 30 कम मात्रा में लगातार बने रहे।
ज़िका वायरस का इतिहास
ज़िका वायरस पहली बार वर्ष 1947 में पहचाना गया। युगांडा के ज़िका जंगल में पहली बार यह संक्रमण मिला था। जोकि युगांडा के एक बंदर में पाया गया था और इसके 5 साल बाद 1952 मे इसे पहली बार इंसानों में भी देखा गया। जो कि 2007 में याप द्वीप में पाया गया था। यहां पर 49 केस वायरस के मिले थे लेकिन ये सभी केस हल्की श्रेणियां के थे और इनसे कोई जान माल की हानि नहीं हुई।
अफ्रीका में 1952 के बाद इसके ऐसे केस कहीं भी देखने को नहीं मिले। अफ्रीका के बाद यह 2007 में पहली बार एक ice land में देखा गया। इसके बाद यह वायरस इतनी जल्दी से फैला की फिर रुकने का नाम ही नहीं लिया और आज तक फैलता ही जा रहा है। ज़िका जंगल के नाम पर ही वायरस का नाम रखा गया था। ज़िका वायरस ज्यादातर मच्छर के काटने से फैलता है।
डेंगू और ज़िका दोनों एक ही मच्छर के काटने से होते हैं। इस मच्छर का नाम एंडीज एजिप्टी हैं। ज़िका बिमारी में भी डेंगू जैसे लक्षण होते हैं, लेकिन कई बार यह डेंगू से ज्यादा खतरनाक भी हो जाते हैं। इसके कुछ सामान्य लक्षण है बुखार का आना, शरीर पर चकत्ते पड़ना, जोड़ों में दर्द आदि।
इसका सबसे ज्यादा खतरनाक प्रभाव गर्भवती महिलाओं में होता हैं। इसका गर्भवती महिला के बच्चे पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। बच्चा या तो विकलांग होता हैं या उसका सर का विकास नहीं होता। आप को जानकर हैरानी होगी कि इस बिमारी का अब तक कोई परमानेंट इलाज नहीं है।
इस बिमारी में डॉक्टर मरिज को खासतौर पर पैरासिटामोल ही देते हैं। बस बुखार उतारने की कोशिश करते रहते हैं। परन्तु इस से भी ज्यादा खतरनाक बात यह है कि इस बिमारी से जान नहीं जाती है। फिर भी हमें ज़िका से डरने की नहीं बल्कि सावधान रहने की जरूरत है।
2013 के बाद यह वायरस बहुत सारे देशों में देखा गया जिनमें मुख्य रूप से कैरैबिअन कंटरिज़, central and south America(दक्षिणी अमेरिका केंद्र) में पेसिफिक आइलेंड शामिल थे और इस लिस्ट में भारत भी शामिल है। इसके बाद इसके केस लगातार बढ़ते ही जा रहें हैं। भारत में भी इसके बाद बहुत सारे केस देखने को मिलें हैं। इसके बाद 2015 में ब्राजील में लगभग 1.5 मिलीयन व्यक्तियो में इस वायरस के केस मिले। एक रिपोर्ट के अनुसार तकरीबन 15 लाख लोगों को ये संक्रमण हुआ जिनमें से साढ़े तीन हजार बच्चों को मानसिक विकृति हुआ। वायरस का यह पहला केस था जहां पर माता से बच्चे में यह संक्रमण पाया गया था।
बच्चों में खास असर
इसका सबसे ज्यादा खतरा गर्भवती महिलाओं को रहता हैं क्योँकि ज़िका वायरस में आमतौर पर ज्यादातर जटिल समस्याएँ गर्भवती महिलाओं को होती है। इसकी वजह से गर्भ मे पल रहे बच्चे के मस्तिष्क का विकास रुक जाता है। इस बीमारी को माइक्रोसेफली नाम से जाना जाता है। ऐसा इसलिए है। क्योँकि ये वायरस माँ सें बच्चें में आसानी सें संचारित हो जाता है। माता से बच्चे में वायरस के हस्तांतरण को लंबवत संचरण (vertical transmission) कहते है।
ओर इस तरह से ये वायरस माता से बच्चे मे पहुँच जाता है और शिशु में खतरनाक दिक्कत दिखाई देती हैं। जोकि बच्चे के मस्तिष्क की वृद्धि मे रुकावट के रुप मे सामने आती है। जिससे बच्चे मानसिक रूप से विकृत (mentally deformative) हो जाते हैं जिसको माइक्रोसेफली रोग कहते हैं।
Transmission के प्रकार / ये वायरस कैसे फैलता है।
ये खतरनाक वायरस हवा से नहीं फैलता है जैसे कि करोना वायरस का संक्रमण फैलता है।
· मच्छर के काटने से इस का संक्रमण होता हैं। वाहक मच्छर के काटने से फैलता है जिस मच्छर का नाम एंडीज एजिप्टी हैं।
· इसका दूसरा जड़ है, रक्त संचरण एक तो ये मेजर प्रोब्लम्स होती है दूसरा ये जो इसका संक्रमण रक्त संचरण के द्वारा होता है। रक्त संचरण से भी इसका संक्रमण फैलता है। कोई भी वायरस आज के समय में बहुत तेजी से फैलता है क्योंकि आजकल एक देश से दुसरे देश में जाना बहुत आसान है। फिर चाहे उद्देश्य कुछ भी हो व्यवसाय का या घुमने का लोग आते जाते ही रहते हैं। तो जो एक देश में बीमारी होती है वह दुसरे देश में फ़ैल जाती है। ये तीसरा इसका यौन संचरण होता है। यौन संपर्क से भी ये फैलता है। जिसमे ओरल सेक्स भी शामिल है।
· संक्रमित गर्भवति महिला से बच्चे मे नाल (placenta) के जरिये होता है। सेलाइवा, युरिन,ब्रस्ट मिल्क इनमे भी ज़िका होता है और संचारित होता है। गर्भावस्था अगर माता को यह संक्रमण है तो ये बच्चे में अपने आप ही हो जाता है और बच्चे में माइक्रोसेफली नाम की बीमारी हो जाती है जिसमें उसके ब्रेन का गत छोटा होता है यानी कि मस्तिष्क विकृत होता है और उसके साथ ही गंभीर शारीरिक आविष्कार संबंधी विकार होता है।
मच्छर के द्वारा
ज़िका वायरस एक मच्छर जनित बीमारी है जो कि एंडीज मच्छर से फैलती है। ज़िका वायरस के शिकार लोगों में ज्यादा लक्षण नज़र नहीं आते या इसके लक्षण बहुत हल्के हो सकते हैं या देर से नज़र आ सकतें हैं। कोराना वायरस के बाद अब किसी और वायरस का नाम सुनते ही अब डर लगने लगता है।
लेकिन ज्यादातर मामले इसके मच्छर के काटने से ही होते हैं ,जैसा की हमने आप को पहले ही बताया है। इसमें मच्छर काटता रहता है और गुणा (multiplication) रहता है। जब भी ये मच्छर काटता है किसी संक्रमित व्यक्ति को तो वो मच्छर वाहक बन जाता है और वो फिर संक्रमण फैलाता रहता है। तो इस बिमारी में अगर हम मच्छर को नियंत्रण करें और टाइम रहते इसका टैस्ट करवाएं तो इसमें ज्यादा समस्या नहीं होती है।
इस वायरस की ख़ास बात यह है कि ये लम्बे समय तक खून में रहता है। कई बार तो यह 3-3 महिनों तक खून में रहता है। एडिज एजप्टाइल मच्छर इसमें वाहक का काम करता है।
(Asymptomatic desease) स्पर्शोन्मुख रोग
बहुत सारे ऐसे लोग होते हैं जिनको वायरस होने पर कोई लक्षण नजर नहीं आते वे बिल्कुल स्पर्शोन्मुख हैं। अगर लक्षण नजर भी आते हैं तो विज्ञान यह मानता है कि ये हल्के लक्षण होते हैं।
वायरस की वाइरालजी क्या है।
ये फ्लेविविरिडे परिवार से हैं यानी कि जो डेंगू, पीला बुखार, जापानीएन्सेफलाइटिस, वेस्ट नाइलफीवर जो होता है। उसी प्रकार से ये भी संबंध रखता है।
Precaution एहतियात
ये एंटीबॉडी टैस्ट से पता चल जाता हैं। इससे बचने के लिए सबसे जरूरी है कि मच्छर को उत्पन्न ना होने दें।
- अपने आस पास साफ सफाई रखें।
- पानी को इकट्ठा न होने दें।
- मच्छरों के सीज़न में पूरी बाजुओं के कपड़े पहने और सावधान रहें।
अगर आप को वायरल फीवर के लक्षण नज़र आते है और शरीर पर लाल रंग के निशान भी दिखाई देते हैं। तथा जोड़ों में दर्द हो, आंखें लाल हो तो तुरंत अपने डॉक्टर से सलाह लें और ज़िका वायरस का टैस्ट करवाएं।
- ज़िका वायरस में ज्यादातर लक्षणात्मक इलाज़ किया जाता हैं। यानी लक्षणों को कम करना। जिस तरह की परेशानी सामने आती हैं हम उसी का इलाज करते हैं। जैसे:-
- कि अगर फीवर कें लक्षण है तो पहले फीवर का इलाज करते हैं
- और फिर जो दुसरा लक्षण सामने आता है उस का इलाज किया जाता है।
- ज़िका के इलाज की यह विधि ही अपनाई जाती हैं।
- इसके लिए अभी तक कोई दवाई या वैक्सीन नहीं बनीं है
- जो इस भयंकर बिमारी का पुरी तरह और सटीक इलाज कर सके।
यह एक संक्रमित बीमारी होने के बाद भी वायु के द्वारा नहीं फैलती है।
ये इस तरह के फीवर बहुत ज्यादा निर्जलीकरण करते हैं। इसलिए अच्छी मात्रा में
तरल पदार्थ लेने जरूरी है ताकि जो जटिलताओं है वो कम हो सके।
मरीज को मच्छरदानी में रखिए ताकि दुसरे किसी ओर को संक्रमण ना हो तथा मरीज भी
अन्य मच्छरों के संपर्क में ना आ पाए।
Very helpful
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