google-site-verification=szXQ3J15P_WEBMEvnZQ6GRymsUYyr-9mEj-p7Ds6W3I ग्लोबल वार्मिंग क्या है? ग्लोबल वार्मिंग एक बड़ा खतरा, ग्लोबल वार्मिंग से जलती धरती | ग्लोबल वार्मिंग की वजह से तेजी से पिघल रहे ग्लेशियरस | Covid 19 And currently news of training topic

शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

ग्लोबल वार्मिंग क्या है? ग्लोबल वार्मिंग एक बड़ा खतरा, ग्लोबल वार्मिंग से जलती धरती | ग्लोबल वार्मिंग की वजह से तेजी से पिघल रहे ग्लेशियरस

ग्लोबल वार्मिंग एक बड़ा खतरा

विश्व पर एक बड़ा खतरा बन गया है जिसकी वजह से हमें गंभीर परिणाम भुगतने पड सकते हैं। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से प्रकृति का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। 

जिससे दुनिया भर के देशों के सामने ग्लोबल वार्मिंग एक बड़ी चुनौती के रूप में खड़ी है। पृथ्वी के बिगड़ते हालात, मौसम में बदलाव कहीं पर सूखा तो कहीं अत्यधिक बारिश। 

कहीं बिना मौसम के बरसात से बाड़ जाती है तो कहीं बारिश की रितू में भी सूखे जैसे हालात बन जाते हैं।

इंसानों की लापरवाही की वजह से पृथ्वी का तापमान  लगातार बढ़ रहा है और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से दुनिया भर के ग्लेशियरस तेजी से पिघल रहे हैं। 

 विशेषज्ञों के अनुसार पृथ्वी की इस अस्थिरता की वजह से हम मनुष्यों को इसके गंभीर परिणाम झेलने पड़ सकते हैं। जिस तरह से या जिस तेजी से ग्लेशियर्स की बर्फ पिघल रही है।

उससे हमारे सामने एक बहुत बड़ा खतरा पैदा हो गया है। अगर इसी रफ्तार से बर्फ का पिघलना जारी रहा तो वो दिन दूर नहीं है। जब समंदर का जल स्तर बढ़ने से तटीय  भू-भाग पुरी तरह से पानी में समा जाएंगे।

यह खतरा दुनिया भर के देशों पर मंडरा रहा है। दरअसल हम पृथ्वी के बिगड़ते मौसम की बात कर रहे हैं। एक तरफ अंटार्कटिका की बर्फ पिघल रही है तो दूसरी ओर ग्रीनलैंड हिमालय के ग्लेशियर भी ग्लोबल वार्मिंग से पिघल रहे हैं।

ग्लोबल वार्मिंग क्या है?

IPCC की रिपोर्ट में एक रिसर्च के मुताबिक ये चेतावनी दी गई है कि अगर हम ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने में पूरी तरह से कामयाब हो जाए। 

और दुनिया के इस बढते हुए तापमान को बढ़ने से रोककर 1.5°C पर सीमित कर दे। तब भी हम एशिया के पर्वतों के ग्लेशियरस के बर्फ का एक तिहाई बर्फ को पिघलने से नहीं रोक सकते।

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ग्लोबल वार्मिंग

वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों जैसे कि मिथेन, (CH4),  कार्बन डाई आक्साइड (CO2) ओर कलोरो फ्लोरो कार्बन गैस (CFC) के बढ़ने से पृथ्वी के औसत तापमान में होने वाली बढोतरी को ही ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ही जलवायु परिवर्तन होते हैं।

कार्बन डाई आक्साइड गैस वातावरण में गर्मी को रोककर रखती है जिससे पृथ्वी का तापमान बढता है। परिणामस्वरूप ग्लेशियरस पिघलते है। 

CFCs गैस ओजोन कवच को नुकसान पहुंचाती है जिससे ओजोन परत के पतला होने की वजह से सूर्य की हानिकारक UV किरणें पृथ्वी पर सीधे पडती है। और कई सारी बिमारीयो का कारण बनती है। 

जल ही जीवन है। जल नहीं तो जीवन नहीं। 

इसलिए पृथ्वी का स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है। और हमें तापमान को संतुलित करने के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए। 

ग्लोबल वार्मिंग की वजह से मानव जाति पर समुद्र का जलस्तर बढ़ने से तटीय इलाकों के पानी में डूबने का खतरा मंडरा रहा है। ये तेजी से पिघलते ग्लेशियरस पृथ्वी पर मनुष्य के जीवन को समाप्त भी कर सकते हैं।

  जिस तरह से पिछले कुछ सालों से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। उससे एक दिन पृथ्वी का तापमान इतना बढ़ जाएगा कि यहां इन्सान का रहना मुश्किल हो जाएगा। इंसान इतनी गर्मी झेल नहीं पाएगा। 

ग्लेशियरों के पिघलने से, नदियां जो मीठे पानी का बहुत बड़ा स्रोत हैं, ये सूख जाएगी। और ऐसे में भूमिगत जल भी खत्म होने की कगार पर पहुंच जाएगा। जिससे दुनिया के सामने पीने के शुद्ध पानी का संकट खड़ा हो जाएगा। 

मीठे पानी का स्टॉक खत्म हो जाएगा। पानी के लिए संघर्ष करना पडेगा। और इन सब वजहों से पृथ्वी पर मनुष्य का जीवन पूरी तरह से तबाह हो सकता है।

ग्लोबल वार्मिंग की वजह से तेजी से पिघल रहे ग्लेशियरस

ग्लोबल वार्मिंग से दुनिया भर के ग्लेशियरस तेजी से पिघल रहे हैं पृथ्वी पर तकरीबन दो लाख से भी ज्यादा ग्लेशियरस मौजूद हैं।

हमारी धरती पर प्राचीन काल से ही बर्फ का एक विशाल भंडार है नासा के अनुसार 2002 से 2016 तक तकरीबन 1 लाख करोड़ किलोग्राम बर्फ पिघल चुकी है और 2002 से 2016 तक 5.5 मिली मीटर समुद्र का जल स्तर बढ़ गया है। 

 एक स्टडी के मुताबिक वर्ष 1980 के बाद से समुद्र का जल स्तर 9 इंच बढा है। और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ही ग्लेशियरस, आइसबर्ग टूटकर समुद्र में गिरते हैं।

पिछले 100 वर्षों में दुनिया के समुद्र तल में 35% बढोत्तरी ग्लेशियरों के पिघलने की वजह से हुई है। और अगर इसकी तुलना ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की बर्फ की चादरों से करें तो इनके पिघलने से समुद्र तल का जलस्तर कई दर्जन मीटर तक बढ़ सकता है।

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ग्लोबल वार्मिंग के दुष्परिणाम

Aविशालकाय हिमखंड 

अंटार्कटिका में मई 2021 को अब तक का सबसे बड़ा आइसबर्ग टूटकर समुद्र में चला गया है। दुनिया भर में अब ग्लोबल वार्मिंग ने अपना कहर दिखाना शुरू कर दिया है।ओर इसी के साथ प्रकृति ने ख़तरे की घंटी भी बजा दी है। ये चेतावनी है, आने वाली बड़ी मुसीबतों की जो धरती पर समुद्र तल का लेवल बढ़ने से आएगी।

B) पिघल रहे अंटार्कटिका के ग्लेशियरस

अंटार्कटिका में दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा आइसबर्ग जिसका आकार दिल्ली से लगभग 3 गुणा हैं, टूटकर समुद्र में चला गया है। Experts  के अनुसार ये आइसबर्ग 170 KM लम्बा 25 KM चौड़ा है ओर इसकी गहराई 150 KM है। 

यूरोपीय स्पेस एजेंसी द्वारा ली गई सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि ये आइसबर्ग  अंटार्कटिका के पश्चिमी हिस्से से टुटा है।आइसबर्ग यानि बर्फ की बड़ी बड़ी चट्टानें।

  आइसबर्ग ग्लेशियरस नहीं होते ये ग्लेशियरस के पास मौजूद रहने वाले बर्फ के विशाल पहाड़ होते हैं। यह आइसबर्ग A76 टूटने के बाद दक्षिणी महासागर के वेडिल सागर में प्रवेश कर गया है। 

इस हिमखंड का क्षेत्रफल 4320 वर्ग km हैं। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से जलवायु परिवर्तन के कारण अंटार्कटिका के ग्लेशियरस गर्म होकर टूट रहें हैं।

इस आइसबर्ग के टूटने से पुरी दुनिया ख़तरे में गई है।ऐसा पहली बार नहीं है, इससे पहले भी कई बार अंटार्कटिका के ग्लेशियरस टूटकर पानी में समाते रहे हैं

दक्षिण अंटार्कटिका पृथ्वी के दक्षिण गोलार्ध में स्थित है। जिसका क्षेत्रफल 1 करोड़ 42 लाख वर्ग km हैं। 

यह दूर-दूर तक बर्फ की चादरों से ढका हुआ है। अंटार्कटिका में दुनिया के पहाडों पर उपस्थित सभी ग्लेशियरों की तुलना में 50 गुणा अधिक बर्फ हैं।

 

अंटार्कटिका एक बहुत बड़ी वजह है जिसके कारण धरती पर जीवन है। अगर इसकी सारी बर्फ पिघल जाए तो धरती पर प्रलय जाएगा - समुुंदर् तट के बहुत सारे देश पानी में डूब जाएंगे। और अब सुनिए उससे भी ज्यादा हैरान कर देने वाली बात- हम जानते हैं कि धरती का तापमान ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बढ़ रहा है|

वैज्ञानिको का मानना है कि धरती का तापमान एक दिन इतना बढ़ जाएगा कि अंटार्कटिका की सारी बर्फ पिघल जाएगी और अकेले अंटार्कटिका की बर्फ पिघलने से समुद्रों का जलस्तर 70 मीटर तक बढ़ जाएगा और धरती का ज्यादा तर हिस्सा पानी में डूब जाएगा।

अंटार्कटिका का टाॅटेन ग्लेशियर जिसका आकार पूरे फ्रांस से भी बड़ा है, इसके पिघलने का असर पूरी दुनिया पर पडेगा। यह काफी तेजी से पिघल रहा है और इसके पिघलने से समुद्र का लेवल काफी हद तक बढ़ सकता है।

C) ग्रीनलैंड दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बर्फ का घर

अगर  बात करें ग्रीनलैंड की तो अंटार्कटिका के बाद ग्रीनलैंड में सबसे ज्यादा बर्फ के ग्लेशियरस पाएं जाते हैं। और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ग्रीनलैंड का बर्फ भी तेजी से पिघल रहा है

और अब इसे रोकना इन्सानों के लिए संभव नहीं रहा है। इसके अलावा एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार ग्रीनलैंड बर्फ जितनी तेजी से पिघल रहा है उससे समुद्रों में पानी का लेवल 7 मीटर यानी 23 फीट से भी ज्यादा बढ़ सकता है। 

यह पानी का लेवल दुनिया में बहुत बड़ी बर्बादी लाने के लिए काफी है। जिससे दुनियाभर के कई देशों में जानलेवा बाढ़ जाएगी

D)  ग्रीनलैंड की रिपोर्ट

हाल ही मे ग्रीनलैंड पर की गई रिसर्च पर एक रिपोर्ट सामने आई है। जिसमें कहा गया है कि ग्रीनलैंड की बर्फ भी बहुत तेजी से पिघल रही है ग्रीनलैंड के बर्फ के पहाड़ भी बहुत तेजी से पिघल कर लुप्त हो रहे हैं 

वो दिन दूर नहीं है जब धरती के सारे ग्लेशियरस पिघलकर पानी बन जाएंगे जिससे समुंद्र का लेवल इतना बढ़ जाएगा , कि विश्व के बहुत सारे भू- भाग पानी में समा जाएंगे। इससे पूरे विश्व में तबाही सकती हैं। ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव दुनिया के सामने है।

पिघल रहे हैं हिमालय के ग्लेशियरस

E) चामोली ग्लेशियर

इसके साथ ही हिमालय के ग्लेशियर भी तेजी से पिघल रहे हैं। सिर्फ ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका के ग्लेशियरों पर ही नहीं अपितु  पूरी दुनिया के ग्लेशियरों पर ग्लोबल वार्मिग का असर है।

और इसके परिणाम स्वरूप ही चामोली में नंदा देवी ग्लेशियर के टूूटने से उत्तराखंड में भारी तबाही आई थी। इस आपदा से ऋषिकेश  बांध पूर्वतया नष्ट हो गया था।


कई गांवों में जल भराव ओर बहुत से लोगों की जान गई थी। ऋषिगंगा और धोलीगंगा नदियों का जलस्तर ख़तरे के निशान से ऊपर उठ गया था और चामोली में एक विशिष्ट भू-भाग मलबे में तब्दील हो गया था।

ये आपदा हिमालय के नन्दा देवी ग्लेशियर के फटने से और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से नन्दा देवी ग्लेसियर के पिघलने की वजह से आई थी।

F) 2013 मे केदारनाथ में  आईं  बाढ़

ग्लेशियरों के पिघलने से दुनिया भर में बहुत सारे जमीन पर रहने वाले लोगों पर भी पड़ता है। जिनके लिए ग्लेशियरस ही पानी का प्रमुख स्रोत है।

जैसे हिमालय के ग्लेशियरस आसपास की घाटी में रहने वाले 25 करोड़ लोगों को नदियों द्वारा (जो हिमालय से निकलती है) पानी देते हैं।

लेकिन इसके विपरीत ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ग्लेशियरों के फटने से नदियों में अचानक बाढ़ जाती है जिससे पूरी की पूरी घाटियां पानी में समा जाती है। और इतना ही नहीं  केदारनाथ में 2013 में जो भंयकर बाढ आई थी। 

जिसमें 50 हजार से भी ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी, और लाखों लोग बेघर हो गए थे। दरअसल यह त्रासदी भी भारी बारिश के कारण और हिमालय के एक विशाल ग्लेशियर के फटने की वजह से आईं थी।


समय-समय पर प्रकृति अपना उग्र रूप दिखाती रहती हैं। ये वो अलार्म है जो प्रकृति समय समय पर इंसानों को सचेत करने के लिए बजा रही हैं। लेकिन लगता है मनुष्य इस तबाही की तरफ बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। इंसान ने खुद ही अपनी कब्र खोदी है। 

ग्लोबल वार्मिंग की वजह से तकरीबन पिछले 100 सालों से लगातार ग्लेसियरो का पिघलना जारी है। और ये  संकेत है बहुत बड़ी विप्पत्ति का जो बड़े पैमाने पर तबाही ले कर आएगी।

 

ग्लोबल वार्मिंग से जलती धरती

धरती सर्वनाश की ओर

ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में बर्फ कि चादरों के पिघलने से महासागरों की धाराएं, मानसूनी इलाकों में वर्षावन पर काफी खतरनाक असर पड़ेगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक सामने आया है कि बर्फ की चादर का 1हिस्सा खत्म होने की कगार पर है।

जिस हिसाब से हम धरती का सर्वनाश कर रहे हैं। उस हिसाब से अगले 1000 साल में धरती की सारी बर्फ पिघल जाएगी। और तकरीबन 900 साल में ग्रीनलैंड की भी सारी बर्फ पिघल जाएगी।

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जिससे पुरी दुनिया का अस्तित्व खतरे में जाएगा। समुद्र लेवल  के तेजी से बढ़ने की वजह से रिपोर्ट के मुताबिक 2300 इसवी तक समुद्र लेवल 2 मीटर तक बढ़ जाएगा , रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2 मीटर जलस्तर बढ़ने से दुनिया में कई देशों के अस्तित्व पर बड़ा  खतरा मंडरा रहा है 

जिसमें मुख्य फ्लोरिडा, लंदन के कुछ शहर और भारत के तटीय इलाकों पर भी खतरा मंडरा रहा है। हर साल  कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि इससे इतना बड़ा संकट हमारे सामने खड़ा हो गया है। इस रिसर्च में शामिल वैैज्ञानिको ने कहा है कि अंटार्कटिका, ग्रीनलैंड और हिमालय में बर्फ पिघलने का असर धरती पर दिखना  शुरू हो गया है। 

 जिसके परिणामस्वरूप हमें  गंभीर नतीजे भुगतने होंगे।हमारे द्वारा उत्पन की गई ग्लोबल वार्मिंग  जैसी समस्याओं की वजह से बर्फ के पिघलने की रफ्तार इतनी बढ़ चुुकी है कि शायद इसे अब रोकना संभव हो।यह सीधे तौर पर कहें तो पृथ्वी ग्लोबल वार्मिंग की वजह से जल रही है और विनाश की ओर बढ़ रही है।


ओर इसके लिए जरूरी है कि दुनिया इस विषय को सिर्फ सेमिनार ओर सम्मेलनों तक सीमित ना रखें और इसका विस्तार आम लोगों के बीच भी हो।

इस समय सभी देश इसके लिए प्रतिबद्ध है कि कार्बन उत्सर्जन में कमी आनी चाहिए। CO2 वातावरण में मौजूद हीट को रोककर रखती है जिससे पृथ्वी का तापमान बढता है। 

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