google-site-verification=szXQ3J15P_WEBMEvnZQ6GRymsUYyr-9mEj-p7Ds6W3I डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय ( Dr. BhimRav Ambedkar and the constitution of india b r ambedkar Biography in hindi ) | Covid 19 And currently news of training topic

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय ( Dr. BhimRav Ambedkar and the constitution of india b r ambedkar Biography in hindi )

डॉक्टर भीमराव  अंबेडकर का जीवन परिचय ( Dr. BhimRav Ambedkar and the constitution of india b r ambedkar  Biography in hindi )
Bhim Rav Ambedkar


यह लेख तथा जीवनी डॉ. भीमराव अंबेडकर जी तथा भारत के सविधान निर्माता अंबेडकर जी Dr. BhimRav Ambedkar and the constitution of india b r ambedkar के जीवन पर आधारित है...


परिचय :-  

यह लेख तथा जीवनी डॉ. भीमराव अंबेडकर जी तथा भारत के सविधान निर्माता अंबेडकर जी Dr. BhimRav Ambedkar and the constitution of india b r ambedkar के जीवन पर आधारित है। इस जीवनी तथा "डॉक्टर भीमराव  अंबेडकर का जीवन परिचय" का मुख्य उद्देश्य है कि आप सभी लोगों में तथा अपनी भावी पीढ़ी में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी के जीवन के प्रयासो, संघर्षों तथा जीवन के महत्व से अवगत कराना तथा अपनी भावी पीढ़ी को सही मार्ग दर्शन के बारे में बताना।

इस जीवनी  को पढ़ने के बाद आप इन सभी विषयों पर गहन जानकारी ले पाएंगे जैसे कि b r ambedkar family", डॉ भीमराव अंबेडकर की फैमिली, डॉ भीमराव अंबेडकर का जन्म स्थान,  "br ambedkar birth place", डॉ भीमराव अंबेडकर की हिस्ट्री या इतिहास"dr ambedkar history", तथा डॉक्टर भीमराव अंबेडकर स्वर्गवासी तिथि"ambedkar death date" 
इन सभी विषयों के अतिरिक्त अनेक ऐसी पहलू जो कि अंबेडकर जी के जीवन से जुड़े हुए हैं उन सभी के विषय में विस्तार से जानकारी आप को मिलने वाली हैं।

डॉ भीमराव अंबेडकर जिनका पूर्ण नाम डॉ भीमराव रामजी अंबेडकर था इनका जन्म 14 अप्रैल 1891 मि हुआ तथा उनकी मृत्यु 6 दिसंबर 1956 में हुई यह भारतीय विधि वक्ता अर्थशास्त्र और दलित नेता थे। इन्होंने अपनी जीवन में बहुत ही प्रयास किया।
इनके प्रयासों तथा इनके जीवन के संघर्ष के वजह से ही इन्होंने भारत का सविधान ऐसा लिखा जिसकी वजह से यह विश्व में सबसे अच्छा और सबसे सविधान के रूप ले पाया।


विशेष सूची

1. प्रारंभिक अंबेडकर जी का जीवन

2. अंबेडकर जी की शिक्षा

      i) माध्यमिक शिक्षा के बाद
      ii) बॉम्बे विश्वविद्यालय में अध्ययन
      iii) कोलंबिया विश्वविद्यालय में अध्ययन
      iv) लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में अध्ययन

3. छुआछूत और अछुत  के विरुद्ध आंदोलन

4. संविधान की प्रस्तावना में योगदान (the constitution of india b r Ambedkar)

5. डॉक्टर भीमराव के परिवर्तन तथा अंबेडकर और गांधी के विचार 

6. मौत (निधन)

7. निष्कर्ष


1. प्रारंभिक अम्बेडकर जी का जीवन

प्रारंभिक अंबेडकर जी का जीवन उनके गांव में ही बिता। इनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को (महू) जोकि मध्य प्रदेश में स्थित है स्थान पर हुआ था। अभी स्थान को डॉक्टर अंबेडकर नगर के नाम से जाना जाता है। यह स्थान मध्य प्रदेश के सैन्य छावनी के पास आता है। अंबेडकर जी का जन्म भी सैनी छावनी में ही हुआ था। उनका परिवार आधुनिक महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के अंबाडावे ( मंदांगद तालुका ) शहर से मराठी पृष्ठभूमि का था।

वैसे तो अंबेडकर जी का संपूर्ण जीवन कठिनाइयों मे रहा है परंतु उनका प्रारंभिक जीवन अपेक्षाकृत अधिक कठिनाइयों में बीता। अंबेडकर जी के पिता जी का नाम रामजी  मालोजी सकपाल  था। वह अपने परिवार में सबसे छोटे थे तथा राम जी की 14वीं और आखिरी संतान थे। उनके पिता एक  सूबेदार के पद पर थे।
 अम्बेडकर का जन्म एक महार (दलित) जाति में हुआ था।

जिस कारण वर्ष इनके साथ समानता का व्यवहार होता था। इनको छुआछूत और स्पर्श जैसी जातिवाद समस्याओं का समना करना पड़ा। अंबेडकर जी पढ़ने की लिए स्कूल में तो जाते थे परंतु नीची जाती का होने के कारण उनहे कक्षा के अंदर बैठने की आज्ञा नहीं थी। जिस कारण वंस प्रारंभिक अंबेडकर जी का जीवन काफी कठिनाइयों में व्यतीत हुआ।

उन्हें पानी के बर्तन को छूने की भी अनुमति नहीं थी उन्हें जब प्यास लगती थी तो उस जाति के कोई व्यक्ति ऊपर से ही पानी डाल कर उन्हें पानी पिला ते थे। यह कार्य अंबेडकर जी के स्कूल में चपड़ासी द्वारा किया जाता था यानी कि अंबेडकर स्कूल के चपड़ासी द्वारा किया जाता था, और यदि चपरासी उपलब्ध नहीं होता तो उसे बिना पानी के जाना पड़ता था; उन्होंने बाद में अपने लेखन में स्थिति को "नो चपरासी, नो वाटर" के रूप में वर्णित किया ।  उसे एक बोरी पर बैठना पड़ता था जिसे वह अपने साथ घर ले जाता था। 

बचपन में ही अंबेडकर जी की माता जी का ध्यान हो गया था जिसकी वजह से उनकी देखरेख की मौसी ने की थी। उनकी सभी भाइयों और बहनों में से अंबेडकर जी ने ही शिक्षा ग्रहण की अधिक अपमान का सामना करते हुए भी उन्होंने अपने शिक्षा को नहीं छोड़ा। अम्बेडकर के तीन बेटे - बलराम, आनंदराव और भीमराव - और दो बेटियां - मंजुला और तुलासा थे।

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2.  अंबेडकर जी की शिक्षा

डॉ आंबेडकर जी की शिक्षा के तहत चार चरणों में विभाजित जा सकती है। जोकि प्रकार है :-

      I ) माध्यमिक शिक्षा के बाद
      ii) बॉम्बे विश्वविद्यालय में अध्ययन
      iii) कोलंबिया विश्वविद्यालय में अध्ययन
      iv) लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में अध्ययन

i) माध्यमिक शिक्षा के बाद :- 

माध्यमिक शिक्षा से अभिप्राय अंबेडकर जी की आरंभिक शिक्षा से है और अंबेडकर जी ने अपनी आरंभिक शिक्षा अपनी गांव से ही गहन की थी। इसके बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए मुंबई मेल चले गए थे। 1897 में  उनका पूरा परिवार मुंबई में चला गया था। जहां पर उन्होंने जिस स्कूल में एडमिशन लिया था उस कुल का नाम आज अंबेडकर एलफिंस्टन हाई स्कूल था उस कुल में अछूतों की श्रेणी में आने वाले डॉ आंबेडकर एकमात्र विधार्थी थे।

डॉ अंबेडकर जी का विवाह 15 वर्ष की आयु में हो गया था और जिनसे उनका विवाह हुआ था उनकी आयु 9 वर्ष की थी और उनका नाम रामाबाई था। 1906 उनका विवाह हुआ था। उसमें लफ्ज़ लव मैरिज नहीं होती थी। इसी कारणवश अंबेडकर जी शादी से पहले रामाबाई के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे यह शादी उनकी माता-पिता द्वारा ही की गई थी।

  ii) बॉम्बे विश्वविद्यालय में अध्ययन

अंबेडकर जी ने 1907 में अपनी मैट्रिक की परीक्षा को पास किया तथा उसके अगले ही वर्ष उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय के एलफिंस्टन  कॉलेज में दाखिला ले लिया। कॉलेज में एडमिशन लेने के बाद डॉक्टर अंबेडकर जी के अनुसार वह महार जाति के पहले बहती बन गई थी जिन्होंने यह उपलब्धि हासिल की क्यूंकि उनकी जाती के लोग चौथी कक्षा को पास करते ही अपनी लाइफ की सबसे बड़ी उपलब्धि को मान लेते थे और इसका जश्न मनाते थे।

जब अंबेडकर जी ने यह उपलब्धि प्राप्त की तो  समुदाय द्वारा उनकी उपलब्धि का जश्र मनाए गया था। इस अवसर पर उन्हें बौद्ध के जीवनी की एक पुस्तक भी भेट की गई थी जो कि उनके परिवारिक मित्र द्वारा दी गई थी।

सन 1912 में अंबेडकर जी ने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान मे अपने डिग्री प्राप्त कर ली थी तथा वह  अब काम करने के काबिल हो चुके थे। बॉम्बे से डिग्री हासिल करने के बाद नहीं मुंबई में वापिस जाना था अपनी बुढ्ढे माता पिता की सेवा करने के लिए। अंबेडकर जी बड़ौदा राज्य सरकार के साथ रोजगार लेने के लिए तैयार हो गए।

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 उनकी पत्नी ने अभी-अभी अपने युवा परिवार को स्थानांतरित किया था और काम शुरू किया था जब उन्हें अपने बीमार पिता को देखने के लिए जल्दी से मुंबई लौटना पड़ा। उनके पिता की 2 फरवरी 1913 को मृत्यु हो गई। यह बहुत ही दर्दनाक दिन था अंबेडकर जी के लिए।

iii) कोलंबिया विश्वविद्यालय में अध्ययन

सन 1913 में बॉम्बे विश्वविद्यालय से डिग्री लेने के बाद वह कोलंबिया विश्व विधालय में एडमिशन लेने के लिए चले गए। इस समय अंबेडकर जी की उम्र 22 साल की थी। वहां जाने के बाद वह एक पारसी के साथ रहने लगे जो कि उनका एक अच्छा मित्र बन गया और उनके साथ लाइफ टाइम तक मित्रता की सूची में रहा।

डॉ अंबेडकर जी ने जून 1915 में कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, इतिहास दर्शन शास्त्र, और नृविज्ञान  के अन्य विषयों में एमए की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्होंने एक थीसिस प्रस्तुत की, प्राचीन भारतीय वाणिज्य। यह उनके जीवन की बड़ी उपलब्धियों में से एक ही यहां तक पहुंचने वाले वह अपनी जाति के एकमात्र व्यतीत थे जिन्होंने इतनी कम आयु में इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल की थी।

1916 में, उन्होंने अपने दूसरे मास्टर की थीसिस, नेशनल डिविडेंड ऑफ इंडिया - ए हिस्टोरिक एंड एनालिटिकल स्टडी को दूसरे एमए के लिए पूरा किया। उन्होंने अपनी योग्यता का उपयोग करते हुए  9 मई को,  एक सेमिनार आयोजित होने से पहले कास्ट्स इन इंडिया: देयर मैकेनिज्म, जेनेसिस एंड डेवलपमेंट पेपर प्रस्तुत किया। मानवविज्ञानी अलेक्जेंडर गोल्डनवाइज़र द्वारा  अम्बेडकर ने अपनी पीएच.डी. 1927 में कोलंबिया में अर्थशास्त्र में डिग्री प्राप्त की थी।

iv) लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में अध्ययन

अब तक की जो पढ़ाई अंबेडकर जी ने की थी वह एक बड़ी उपलब्धियों ने से एक की परंतु अंबेडकर जी जहां पर नहीं रुकने वाले थे। उन्होंने फैसला किया कि वह आगे की पढ़ाई भी करेंगे।
इसलिए अंबेडकर जी लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में आगे की पढ़ाई करने के लिए जाना चाहते थे।  स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स जाने का सपना उनका सन 1916 में पूरा हो गया।  स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (1916-17) में अंबेडकर अपने प्रोफेसरों और दोस्तों के साथ जाने में सफल हुए और वहां पर पढ़ाई भी कर पाए।

अक्टूबर 1916 में, उन्होंने ग्रे इन में बार कोर्स में दाखिला लिया , और साथ ही लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में दाखिला लिया, जहां उन्होंने डॉक्टरेट थीसिस पर काम करना शुरू किया। जून 1917 में, वे भारत लौट आए क्योंकि बड़ौदा से उनकी छात्रवृत्ति समाप्त हो गई थी। उनका पुस्तक संग्रह उस जहाज से अलग जहाज पर भेजा गया था जिस पर वह था, और उस जहाज को एक जर्मन पनडुब्बी द्वारा टारपीडो और डूब दिया गया था।

 उन्हें चार साल के भीतर अपनी थीसिस जमा करने के लिए लंदन लौटने की अनुमति मिली। वे पहले अवसर पर लौटे, और 1921 में मास्टर डिग्री पूरी की। उनकी थीसिस "रुपये की समस्या: इसकी उत्पत्ति और इसका समाधान" पर थी। 1923 में उन्होंने डी.एससी. अर्थशास्त्र से सम्मानित किया गया था।


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3)  छुआ-छूत और अछुतों  के विरुद्ध आंदोलन

अंबेडकर जी ने छुआ-छूत और अछुतों  के विरुद्ध आंदोलन चलाया जाता देश में बुरा बराबरी का अधिकार लाने के लिए बहुत ही ज्यादा प्रयास किए। डॉक्टर अंबेडकर जी खुद एक नीची जाति से थे तो उन्हें इस चीज को समझने में तथा  करीब से अनुभव करने में काफी मदद मिली या  इस समस्या को डॉक्टर अंबेडकर जी ने बहुत ही करीबी से देखा था। डॉक्टर अंबेडकर जी का मानना था कि अगर देश को आगे लेकर जाना है तथा उज्जवल भारत के बारे में सोचना है तो उन्हें इस समस्या से छुटकारा पाना होगा। इसके लिए डॉक्टर अंबेडकर जी ने काफी प्रयास किए और कहीं हद तक वह सफल भी रहे।

जब अंबेडकर जी नौकरी कर रहे थे एक विद्यालय में तो वहां पर उन्होंने इस समस्या का बहुत ज्यादा सामना किया। अंबेडकर जी के टाइम या फिर समय में छुआछूत और अछुत  के साथ बहुत सारा दुर्व्यवहार किया जाता था। नीची जाति के लोगों को अछूत माना जाता था। उनका नीची जाति के लोगों का किसी भी वस्तु को छूने से वह वस्तु है पवित्र हो जाती थी ऐसा उचि जाति के लोग मानते थे। ऊंची जाति में पंडित हिंदू धर्म के ब्राह्मण आदि लोग आ गए थे। जो नीची जाति के दलित लोगों के साथ काफी दूर व्यवहार किया करते थे और अंबेडकर जी भी एक दलित जाति के थे।

जब अंबेडकर जी को एक स्कूल में अध्यापक की नौकरी मिली वहां पर अंबेडकर जी के साथ काफी दूर व्यवहार किया गया शिक्षकों के द्वारा तथा अन्य प्रोफेसरों के द्वारा। यहां पर अंबेडकर जी ने छात्रों के साथ तो अच्छा संबंध बना लिया था तथा छात्र उनके सम्मान भी बहुत ज्यादा करते थे परंतु अन्य शिक्षक और प्रोफेसर डॉक्टर जी के साथ भेदभाव का व्यवहार करते थे वह उनके साथ एक बर्तन में पानी पीने के लिए विद्रोह करते थे तथा उन्होंने इस को काफी हद तक सहन किया।

अन्य प्रोफेसर की मांग थी कि वह अंबेडकर जी के लिए अन्य बर्तन की व्यवस्था की जाए जिसमें वह पानी पिए उन्होंने साफ मना कर दिया था कि वह जिस बर्तन में पानी पीते हैं उस बर्तन में अंबेडकर जी पानी नहीं पिएंगे। जिस वजह से उनके साथ काफी भेदभाव का व्यवहार किया जाता था। परंतु अंबेडकर जी ने हार नहीं मानी और उन्होंने इस सिचुएशन का या फिर इस परिस्थिति का डटकर सामना किया और छुआछूत और अछुत  के विरुद्ध आंदोलन किया सफलता भी प्राप्त की।

अंबेडकर जी की काबिलियत तथा उनकी कुशलता की कारण भारत सरकार अधिनियम 1919 तैयार कर रही साउथबरो समिति के समक्ष, भारत के एक प्रमुख विद्वान के तौर पर आम्बेडकर को साक्ष्य देने के लिये आमंत्रित किया गया। अंबेडकर जी की लिए यह एक बहुत ही सम्मानजनक अवसर था तथा साथ ही दलित लोगों के लिए कुछ करने का सुनहरा ऑफर भी था। इस सुनवाई के दौरान, आम्बेडकर ने दलितों और अन्य धार्मिक समुदायों के लिये पृथक निर्वाचिका और आरक्षण देने की वकालत की।

1920 में, बंबई से, उन्होंने साप्ताहिक मूकनायक के प्रकाशन की शुरूआत की। यह प्रयास उनका एक अच्छा हथियार बन्नी में सफल रहा और अस्पृश्यता के विरुद्ध आंदोलन तथा आवाज उठाने में काफी हद तक सफल रहा। यह प्रकाशन शीघ्र ही पाठकों मे लोकप्रिय हो गया, तब आम्बेडकर ने इसका प्रयोग रूढ़िवादी हिंदू राजनेताओं व जातीय भेदभाव से लड़ने के प्रति भारतीय राजनैतिक समुदाय की अनिच्छा की आलोचना करने के लिये किया। उनके दलित वर्ग के एक सम्मेलन के दौरान दिये गये भाषण ने कोल्हापुर राज्य के स्थानीय शासक शाहू चतुर्थ को बहुत प्रभावित किया, जिनका आम्बेडकर के साथ भोजन करना रूढ़िवादी समाज मे हलचल मचा गया।

बॉम्बे उच्च न्यायालय में विधि का अभ्यास करते हुए, उन्होंने अछूतों की शिक्षा को बढ़ावा देने और उन्हें ऊपर उठाने के प्रयास किये। उनका पहला संगठित प्रयास केंद्रीय संस्थान बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना था, जिसका उद्देश्य शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक सुधार को बढ़ावा देने के साथ ही अवसादग्रस्त वर्गों के रूप में सन्दर्भित "बहिष्कार" के कल्याण करना था। दलित अधिकारों की रक्षा के लिए, उन्होंंने मूकनायक, बहिष्कृत भारत, समता, प्रबुद्ध भारत और जनता जैसी पांच पत्रिकाएं निकालीं

सन 1925 में, उन्हें बम्बई प्रेसीडेंसी समिति में सभी यूरोपीय सदस्यों वाले साइमन कमीशन में काम करने के लिए नियुक्त किया गया। इस आयोग के विरोध में भारत भर में विरोध प्रदर्शन हुये। जहां इसकी रिपोर्ट को अधिकतर भारतीयों द्वारा अनदेखा कर दिया गया, आम्बेडकर ने अलग से भविष्य के संवैधानिक सुधारों के लिये सिफारिश लिखकर भेजीं।

द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध के अन्तर्गत 1 जनवरी 1818 को हुई कोरेगाँव की लड़ाई के दौरान मारे गये भारतीय महार सैनिकों के सम्मान में आम्बेडकर ने 1 जनवरी 1927 को कोरेगाँव विजय स्मारक (जयस्तंभ) में एक समारोह आयोजित किया। यहाँ महार समुदाय से संबंधित सैनिकों के नाम संगमरमर के एक शिलालेख पर खुदवाये गये तथा कोरेगाँव को दलित स्वाभिमान का प्रतीक बनाया।

सन 1927 तक, डॉ॰ आम्बेडकर ने छुआछूत के विरुद्ध एक व्यापक एवं सक्रिय आंदोलन आरम्भ करने का निर्णय किया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों, सत्याग्रहों और जलूसों के द्वारा, पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी वर्गों के लिये खुलवाने के साथ ही उन्होनें अछूतों को भी हिंदू मन्दिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये संघर्ष किया।

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 उन्होंने महाड शहर में अछूत समुदाय को भी नगर की चवदार जलाशय से पानी लेने का अधिकार दिलाने कि लिये सत्याग्रह चलाया। यह सत्य ग्रह एक आंदोलन का रूप लेने में सफल रहा। इस सत्याग्रह के कारण हिंदुओं पंडितों तथा अधिक लोगों में भयंकर विद्रोह हुआ।

1930 में, आम्बेडकर ने तीन महीने की तैयारी के बाद कालाराम मन्दिर सत्याग्रह आरम्भ किया। कालाराम मन्दिर आंदोलन में लगभग 14000  स्वयंसेवक इकट्ठे हुए, जिससे नाशिक की सबसे बड़ी प्रक्रियाएं हुईं। जुलूस का नेतृत्व एक सैन्य बैंड ने किया था, स्काउट्स का एक बैच, महिलाएं और पुरुष पहली बार भगवान को देखने के लिए अनुशासन, आदेश और दृढ़ संकल्प में चले गए थे। जब वे द्वार तक पहुँचे, तो द्वार ब्राह्मण अधिकारियों द्वारा बंद कर दिए गए।

4.संविधान की प्रस्तावना में योगदान ( the constitution of india b r ambedkar)

गांधी व कांग्रेस की कटु आलोचना के बावजूद आम्बेडकर की प्रतिष्ठा एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी। जिसके कारण जब, 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार अस्तित्व में आई तो उसने आम्बेडकर को देश के पहले क़ानून एवं न्याय मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। 

29 अगस्त 1947 को, आम्बेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। संविधान निर्माण के कार्य में आम्बेडकर का शुरुआती बौद्ध संघ रीतियों और अन्य बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन भी काम आया। इस प्रकार अंबेडकर जी का संविधान की प्रस्तावना मे (the constitution of india b r ambedkar) योगदान रहा।

आम्बेडकर एक बुद्धिमान संविधान विशेषज्ञ थे, उन्होंने लगभग 60 देशों के संविधानों का अध्ययन किया था। आम्बेडकर को "भारत के संविधान का पिता" के रूप में मान्यता प्राप्त है। 

"अध्यक्ष महोदय, मैं सदन में उन लोगों में से एक हूं, जिन्होंने डॉ॰ आंबेडकर की बात को बहुत ध्यान से सुना है। मैं इस संविधान की ड्राफ्टिंग के काम में जुटे काम और उत्साह के बारे में जानता हूं।" उसी समय, मुझे यह महसूस होता है कि इस समय हमारे लिए जितना महत्वपूर्ण संविधान तैयार करने के उद्देश्य से ध्यान देना आवश्यक था, वह ड्राफ्टिंग कमेटी द्वारा नहीं दिया गया। सदन को शायद सात सदस्यों की जानकारी है।

आपके द्वारा नामित, एक ने सदन से इस्तीफा दे दिया था और उसे बदल दिया गया था। एक की मृत्यु हो गई थी और उसकी जगह कोई नहीं लिया गया था। एक अमेरिका में था और उसका स्थान नहीं भरा गया और एक अन्य व्यक्ति राज्य के मामलों में व्यस्त था, और उस सीमा तक एक शून्य था। 

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एक या दो लोग दिल्ली से बहुत दूर थे और शायद स्वास्थ्य के कारणों ने उन्हें भाग लेने की अनुमति नहीं दी। इसलिए अंततः यह हुआ कि इस संविधान का मसौदा तैयार करने का सारा भार डॉ॰ आंबेडकर पर पड़ा और मुझे कोई संदेह नहीं है कि हम उनके लिए आभारी हैं। इस कार्य को प्राप्त करने के बाद मैं ऐसा मानता हूँ कि यह निस्संदेह सराहनीय है।"

ग्रैनविले ऑस्टिन ने 'पहला और सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक दस्तावेज' के रूप में आम्बेडकर द्वारा तैयार भारतीय संविधान का वर्णन किया। 'भारत के अधिकांश संवैधानिक प्रावधान या तो सामाजिक क्रांति के उद्देश्य को आगे बढ़ाने या इसकी उपलब्धि के लिए जरूरी स्थितियों की स्थापना करके इस क्रांति को बढ़ावा देने के प्रयास में सीधे पहुँचे हैं।'

आम्बेडकर द्वारा तैयार किए गए संविधान के पाठ में व्यक्तिगत नागरिकों के लिए नागरिक स्वतंत्रता की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए संवैधानिक गारंटी और सुरक्षा प्रदान की गई है, जिसमें धर्म की आजादी, छुआछूत को खत्म करना, और भेदभाव के सभी रूपों का उल्लंघन करना शामिल है। आम्बेडकर ने महिलाओं के लिए व्यापक आर्थिक और सामाजिक अधिकारों के लिए तर्क दिया, और अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सदस्यों के लिए नागरिक सेवाओं, स्कूलों और कॉलेजों में नौकरियों के आरक्षण की व्यवस्था शुरू करने के लिए असेंबली का समर्थन जीता, जो कि सकारात्मक कार्रवाई थी।

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भारत के सांसदों ने इन उपायों के माध्यम से भारत की निराशाजनक कक्षाओं के लिए सामाजिक-आर्थिक असमानताओं और अवसरों की कमी को खत्म करने की उम्मीद की।संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को संविधान अपनाया गया था।अपने काम को पूरा करने के बाद, बोलते हुए, आम्बेडकर ने कहा:

मैं महसूस करता हूं कि संविधान, साध्य (काम करने लायक) है, यह लचीला है पर साथ ही यह इतना मज़बूत भी है कि देश को शांति और युद्ध दोनों के समय जोड़ कर रख सके। वास्तव में, मैं कह सकता हूँ कि अगर कभी कुछ गलत हुआ तो इसका कारण यह नही होगा कि हमारा संविधान खराब था बल्कि इसका उपयोग करने वाला मनुष्य अधम था।

अनुच्छेद 370 का विरोधसंपादित करें

आम्बेडकर ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 का विरोध किया, जिसने जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिया, और जिसे उनकी इच्छाओं के ख़िलाफ़ संविधान में शामिल किया गया था। बलराज माधोक ने कहा था कि, आम्बेडकर ने कश्मीरी नेता शेख अब्दुल्ला को स्पष्ट रूप से बताया था: 

"आप चाहते हैं कि भारत को आपकी सीमाओं की रक्षा करनी चाहिए, उसे आपके क्षेत्र में सड़कों का निर्माण करना चाहिए, उसे आपको अनाज की आपूर्ति करनी चाहिए, और कश्मीर को भारत के समान दर्जा देना चाहिए। लेकिन भारत सरकार के पास केवल सीमित शक्तियां होनी चाहिए और भारतीय लोगों को कश्मीर में कोई अधिकार नहीं होना चाहिए।

इस प्रस्ताव को सहमति देने के लिए, मैं भारत के कानून मंत्री के रूप में भारत के हितों के खिलाफ एक विश्वासघाती बात होंगी, यह कभी नहीं करेगा। "फिर अब्दुल्ला ने नेहरू से संपर्क किया, जिन्होंने उन्हें गोपाल स्वामी अयंगार को निर्देशित किया, जिन्होंने बदले में वल्लभभाई पटेल से संपर्क किया और कहा कि नेहरू ने स्के का वादा किया था।

 अब्दुल्ला विशेष स्थिति। पटेल द्वारा अनुच्छेद पारित किया गया, जबकि नेहरू एक विदेश दौरे पर थे। जिस दिन लेख चर्चा के लिए आया था, आम्बेडकर ने इस पर सवालों का जवाब नहीं दिया लेकिन अन्य लेखों पर भाग लिया। सभी तर्क कृष्णा स्वामी अयंगार द्वारा किए गए थे।

समान नागरिक संहितासंपादित करें

मैं व्यक्तिगत रूप से समझ नहीं पा रहा हूं कि क्यों धर्म को इस विशाल, व्यापक क्षेत्राधिकार के रूप में दी जानी चाहिए ताकि पूरे जीवन को कवर किया जा सके और उस क्षेत्र पर अतिक्रमण से विधायिका को रोक सके। सब के बाद, हम क्या कर रहे हैं के लिए इस स्वतंत्रता? हमारे सामाजिक व्यवस्था में सुधार करने के लिए हमें यह स्वतंत्रता हो रही है, जो असमानता, भेदभाव और अन्य चीजों से भरा है, जो हमारे मौलिक अधिकारों के साथ संघर्ष करते हैं।

समान नागरिक संहिता

आम्बेडकर वास्तव में समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे और कश्मीर के मामले में धारा 370 का विरोध करते थे। आम्बेडकर का भारत आधुनिक, वैज्ञानिक सोच और तर्कसंगत विचारों का देश होता, उसमें पर्सनल कानून की जगह नहीं होती।

 संविधान सभा में बहस के दौरान, आम्बेडकर ने एक समान नागरिक संहिता को अपनाने की सिफारिश करके भारतीय समाज में सुधार करने की अपनी इच्छा प्रकट कि। 1951 मे संसद में अपने हिन्दू कोड बिल (हिंदू संहिता विधेयक) के मसौदे को रोके जाने के बाद आम्बेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।

हिंदू कोड बिल द्वारा भारतीय महिलाओं को कई अधिकारों प्रदान करने की बात कहीं गई थी। इस मसौदे में उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की गयी थी। हालांकि प्रधानमंत्री नेहरू, कैबिनेट और कुछ अन्य कांग्रेसी नेताओं ने इसका समर्थन किया पर राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद एवं वल्लभभाई पटेल समेत संसद सदस्यों की एक बड़ी संख्या इसके ख़िलाफ़़ थी। 

आम्बेडकर ने 1952 में बॉम्बे (उत्तर मध्य) निर्वाचन क्षेत्र में लोक सभा का चुनाव एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप मे लड़ा पर वह हार गये। इस चुनाव में आम्बेडकर को 123,576 वोट तथा नारायण सडोबा काजोलकर को 138,137 वोटों का मतदान किया गया था।


5 . अंबेडकर जी के परिवर्तन तथा अंबेडकर और गांधी के विचार

 अंबेडकर जी के परिवर्तन बहुत ही महत्वपूर्ण रहे हैं आत्मनिर्भर भारत को बनाने में। 1920 के दशक में आंबेडकर विदेश में पढ़ाई पूरी कर भारत लौटे और सामाजिक क्षेत्र में कार्य करना आरम्भ किया। उस वक्त महात्मा गांधी ने कांग्रेस पार्टी की अगुवाई में आजादी के आंदोलन शुरु कर दिया था। 14 अगस्त, 1931 को आंबेडकर और गांधी की पहली मुलाकात बंबई के मणि भवन में हुई थी। उस वक्त तक गांधी को यह मालूम नहीं था कि आंबेडकर स्वयं एक कथित ‘अस्पृश्य’ हैं।

 वह उन्हें अपनी ही तरह का एक समाज-सुधारक ‘सवर्ण’ या ब्राह्मण नेता समझते थे। गांधी को यही बताया गया था कि आंबेडकर ने विदेश में पढ़ाई कर ऊंची डिग्रियां हासिल की हैं और वे पीएचडी हैं। दलितों की स्थिति में सुधार को लेकर उतावले हैं और हमेशा गांधी व कांग्रेस की आलोचना करते रहते हैं।

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अंबेडकर जी का निजी का सम्मान करते थे। परंतु उनके विचार गांधीजी के विचारों से मिलते नहीं थी गांधीजी एक हिंदू तो की स्थापना करना चाहते थे वह मानते थे कि भारत में सनातन हिंदू धर्म का होना आवश्यक है परंतु अंबेडकर जी के विचार गांधीजी से मिलती जुलती थोड़े से थे।

परंतु उनके राजनैतिक विचार गांधीजी के विचारों से बिल्कुल अलग थे वह मानते  थे कि देश में दलितों लिएकोई स्थान में हो तथा सभी को समान काका अधिकार मिले इसके लिए अंबेडकर जी ने अनेकों प्यास किए। भारत में सभी नागरिकों को समानता का अधिकार दिलाने में डॉक्टर भीमराव के परिवर्तनों का महत्त्वपूर्ण  योगदान रहा।

उनकी इस भाषण से उनके विचार स्पष्ट होते हैं कि वह गांधी के बारे में क्या सोचते थे। 26 फ़रवरी 1955 को आंबेडकर ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में महात्मा गांधी पर अपने विचार प्रकट किये। आंबेडकर ने कहा कि वो गांधी से हमेशा एक प्रतिद्वंद्वी की हैसियत से मिलते थे। इसलिए वो गांधी को अन्य लोगों की तुलना में बेहतर जानते थे। आंबेडकर के मुताबिक, "गांधी भारत के इतिहास में एक प्रकरण थे, वो कभी एक युग-निर्माता नहीं थे। "

गांधी और आंबेडकर ने अनेक मुद्दों पर एक जैसे विचार रखे, जबकि कई मुद्दों पर उनके विचार बिलकुल अलग या विपरीत थे। ग्रामीण भारत, जाति प्रथा और छुआ-छूत के मुद्दों पर दोनो के विचार एक दूसरे का विरोधी थे। हालांकि दोनों की कोशिश देश को सामाजिक न्याय और एकता पर आधारित करने की थी और दोनों ने इन उद्देश्यों के लिए अलग-अलग रास्ता दिखाया। गांधी के मुताबिक यदि हिंदू जाति व्यवस्था से छुआछूत को निकाल दिया जाए तो पूरी व्यवस्था समाज के हित में काम कर सकती है। 

इसकी तार्किक अवधारणा के लिए गांधी ने गाँव को एक पूर्ण समाज बोलते हुए विकास और उन्नति के केन्द्र में रखा। गांधी के उलट आंबेडकर ने जाति व्यवस्था को पूरी तरह से नष्ट करने का मत सामने रखा। आंबेडकर के मुताबिक जबतक समाज में जाति व्यवस्था मौजूद रहेगी, छुआछूत नए-नए रूप में समाज में पनपती रहेंगी। गांधी ने लोगों को गाँव का रुख करने की वकालत की, जबकि आंबेडकर ने लोगों से गाँव छोड़कर शहरों का रुख करने की अपील की। 

गाँव व शहर के बारे में गांधी व आंबेडकर के कुछ भिन्न विचार थे। गांधी सत्याग्रह में भरोसा करते थे। आंबेडकर के मुताबिक सत्याग्रह के रास्ते ऊंची जाति के हिंदुओं का हृदय परिवर्तन नहीं किया जा सकता क्योंकि जाति प्रथा से उन्हें भौतिक लाभ होता है। गांधी राज्य में अधिक शक्तियों को निहित करने के विरोधी थे। उनकी प्रयास अधिक से अधिक शक्तियों को समाज में निहित किया जाए और इसके लिए वह गाँव को सत्ता का प्रमुख इकाई बनाने के पक्षधर थे। इसके उलट आंबेडकर समाज के बजाए संविधान को ज्यादा से ज्यादा ताकतवर बनाने की पैरवी करते थे

6.मौत

1948 से, आम्बेडकर मधुमेह से पीड़ित थे। जून से अक्टूबर 1954 तक वो बहुत बीमार रहे इस दौरान वो कमजोर होती दृष्टि से ग्रस्त थे।राजनीतिक मुद्दों से परेशान आम्बेडकर का स्वास्थ्य बद से बदतर होता चला गया और 1955 के दौरान किये गये लगातार काम ने उन्हें तोड़ कर रख दिया। अपनी अंतिम पांडुलिपि भगवान बुद्ध और उनका धम्म को पूरा करने के तीन दिन के बाद 6 दिसम्बर 1956 को आम्बेडकर का महापरिनिर्वाण नींद में दिल्ली में उनके घर मे हो गया।

 तब उनकी आयु 64 वर्ष एवं 7महिने की थी। दिल्ली से विशेष विमान द्वारा उनका पार्थिव मुंबई मेंउनके घर राजगृह में लाया गया। 7 दिसंबर को मुंबई में दादर चौपाटी समुद्र तट पर बौद्ध शैली में अंतिम संस्कार किया गया जिसमें उनके लाखों समर्थकों, कार्यकर्ताओं और प्रशंसकों ने भाग लिया। उनके अंतिम संस्कार के समय उनके पार्थिव को साक्षी रखकर उनके 10,00,000 से अधिक अनुयायीओं ने भदन्त आनन्द कौसल्यायन द्वारा बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी, क्योकि आम्बेडकर ने 16 दिसंबर 1956 को मुंबई में एक बौद्ध धर्मांतरण कार्यक्रम आयोजित किया था।

7. निष्कर्ष (परिणाम) 

इस जीवनी को पढ़ने के बाद आप डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी के बारे में जानने में काफी हद तक सक्षम हो गए होंगे। आप डॉक्टर भीमराव  की जीवनी के बारे में जान पाए होंगे तथा ही है भी जान पाई होंगे कि डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को भारत के सविधान का जनक क्यों कहा जाता है।  ( Dr. BhimRav Ambedkar and the constitution of india b r ambedkar) अगर आपके मन में इस विषय में कोई और सवाल हो या फिर आप भीमराव अंबेडकर के बारे में कुछ और जानना चाहते हो तो आप में कमेंट करके पूछ सकते हैं हम आपके कमेंट का जल्दी से जल्दी रिप्लाई करेंगे।

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